Saturday 30 November 2013

Past of Ajmer

अजमेर
                                                                                        
प्राचीन नगर 'अजय-मेरु' के संस्कृत नाम का अपबरांश रूप ही अजमेर है। इसका मध्य नगर राजप्रसाद, जिसमे अब कुछ स्थानिय कार्यालय स्तिथ है, चाटुकारिता से परीपूर्ण काल्पनिक तिथिवृतों में अकबर द्वारा बनाया हुआ कहा गया है।
अजमेर का भव्य और विशाल केंद्रीय राजप्रसाद, पहाड़ी पर तारागढ़ का किला , किले को जाने वाले मार्ग पर आधी मील ऊपर स्तिथ मस्जिद, किले के भीतर बनी हुई एक अन्य मस्जिद, हिन्दू-मंदिर का सुनिशित लक्षण ----दिवारगिरी युक्त दो बड़े प्रस्तर दीप-स्तम्भ- तथाकथित मोइनीउद्दीन चिस्ती का मकबरा, अरबी शंब्दो के छपवारण वाला अढ़ाई दिन का झोपड़ा और एना सागर झील--ये सभी स्थान मुस्लिम पूर्व राजपूती उद्गम के हैं। उन सभी का निर्माण श्रेय, असत्य रूप में ही, विदेशी मुस्लिम बादशाहों को दिया गया है।

महाराज विग्रहराज विशालदेव के प्रशिक्षणालय का विदमान अंश ही अढ़ाई दिन का झोपड़ा है- यह पहले प्रस्थापित हो चूका है। संस्कृत नाम लिए तारागढ़ का किला भी स्मरणातीत युग का है। उतना ही पुराण जितना पुराना अजयमेरु नगर है। पहाड़ी मार्ग के ऊपर स्थित मस्जिद, किला मुगलो के आधीन होने से पूर्व समय का मंदिर था। किले के भीतर शीर्ष पर स्थित आज का मस्जिद-व् -मकबरा मंदिर ही था। देवालय में मुस्लिम युवतियों द्वारा वर्ष भर के चढ़ावे में से कुछ अंश अभी भी ब्रह्मणो को मिलता है। दो दीप-स्तम्भ भी यही प्रामाणित करते हैं कि यह देवी का मंदिर था। हिन्दू- पूजा में प्रतीकात्मक भेंट स्वरुप कंकण, अभी भी मुस्लि पर्व के समय चढ़ाये जाते हैं, मोइनीउद्दीन चिस्ती का मकबरा तारागढ़ कि तलहटी में स्तिथ किलेबंदी के ध्वंसावशेषो में ही है। जैसा कि बताया जा चूका है, हिंदुओं के ध्वस्त और मुस्लिमों के अधीन किये हुए भवनों में मुस्लिम फ़क़ीर जा बसते थे। जब फ़क़ीर मरते थे, तो उनको उसी स्थान पर गाड़ देते थे, जहाँ वे रहते आये थे। समय व्यतीत होते होते वह स्थान पूजागृह का माहात्म अर्जन कर लेते था।

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