Monday, 28 May 2012


नालंदा विश्वविद्यालय






यहाँ 10,000 छात्रों को पढ़ाने के लिए 2,000 शिक्षक थे। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने 7वीं शताब्दी में यहाँ जीवन का महत्त्वपूर्ण एक वर्ष एक विद्यार्थी और एक शिक्षक के रूप में व्यतीत किया था।इस विश्वविद्यालय की स्थापना का श्रेय गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम ४५०-४७० को प्राप्त हैइस विश्वविद्यालय में भारत के विभिन्न क्षेत्रों से ही नहीं बल्कि कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फारस तथा तुर्की से भी विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे। नालंदा के विशिष्ट शिक्षाप्राप्त स्नातक बाहर जाकर बौद्ध धर्म का प्रचार करते थे। इस विश्वविद्यालय की नौवीं शती से बारहवीं शती तक अंतरर्राष्ट्रीय ख्याति रही थी।अत्यंत सुनियोजित ढंग से और विस्तृत क्षेत्र में बना हुआ यह विश्वविद्यालय स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना था। इसका पूरा परिसर एक विशाल दीवार से घिरा हुआ था जिसमें प्रवेश के लिए एक मुख्य द्वार था। उत्तर से दक्षिण की ओर मठों की कतार थी और उनके सामने अनेक भव्य स्तूप और मंदिर थे। मंदिरों में बुद्ध भगवान की सुन्दर मूर्तियाँ स्थापित थीं। केन्द्रीय विद्यालय में सात बड़े कक्ष थे और इसके अलावा तीन सौ अन्य कमरे थे। इनमें व्याख्यान हुआ करते थे। अभी तक खुदाई में तेरह मठ मिले हैं। मठ एक से अधिक मंजिल के होते थे। कमरे में सोने के लिए पत्थर की चौकी होती थी। दीपक, पुस्तक इत्यादि रखने के लिए आले बने हुए थे। प्रत्येक मठ के आँगन में एक कुआँ बना था। आठ विशाल भवन, दस मंदिर, अनेक प्रार्थना कक्ष तथा अध्ययन कक्ष के अलावा इस परिसर में सुंदर बगीचे तथा झीलें भी थी।

समस्त विश्वविद्यालय का प्रबंध कुलपति या प्रमुख आचार्य करते थे जो भिक्षुओं द्वारा निर्वाचित होते थे। कुलपति दो परामर्शदात्री समितियों के परामर्श से सारा प्रबंध करते थे। प्रथम समिति शिक्षा तथा पाठ्यक्रम संबंधी कार्य देखती थी और द्वितीय समिति सारे विश्वविद्यालय की आर्थिक व्यवस्था तथा प्रशासन की देख--भाल करती थी। विश्वविद्यालय को दान में मिले दो सौ गाँवों से प्राप्त उपज और आय की देख--रेख यही समिति करती थी। इसी से सहस्त्रों विद्यार्थियों के भोजन, कपड़े तथा आवास का प्रबंध होता था।इस विश्वविद्यालय में तीन श्रेणियों के आचार्य थे जो अपनी योग्यतानुसार प्रथम, द्वितीय और तृतीय श्रेणी में आते थे। नालंदा के प्रसिद्ध आचार्यों में शीलभद्र, धर्मपाल, चंद्रपाल, गुणमति और स्थिरमति प्रमुख थे।प्रसिद्ध भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलज्ञ आर्यभट भी इस विश्वविद्यालय के प्रमुख रहे थे।

प्रवेश परीक्षा अत्यंत कठिन होती थी और उसके कारण प्रतिभाशाली विद्यार्थी ही प्रवेश पा सकते थे।शुद्ध आचरण और संघ के नियमों का पालन करना अत्यंत आवश्यक था।

संस्कृत में नालंदा का अर्थ होता है “ज्ञान देने वाला” (नालम = कमल, जो ज्ञान का प्रतीक है; दा = देना)। बुद्ध अपने जीवनकाल में कई बार नालंदा आए और लंबे समय तक ठहरे। जैन धर्म के तीर्थंकर भगवान महावीर क निर्वाण भी नालंदा में ही पावापुरी नामक स्थान पर हुआ।

११९९ में तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने इसे जला कर पूर्णतः नष्ट कर दिया।जब वह नालंदा पहुंचा तो उसने नालंदा विश्वविद्यालय के शिक्षकों से पूछा कि यहां पवित्र ग्रन्थ कुरान है य नहीं। जवाब नहीं में मिलने पर उसने नालंदा विश्वविद्यालय को तहस नहस कर दिया और पुस्तकालय में आग लगा दी। इरानी विद्वान मिन्हाज लिखता है कि कई विद्वान शिक्षकों को ज़िन्दा जला दिया गया और कईयों के सर काट लिये गए।यहाँ के पुस्तकालय में इतनी किताबें थी की आग ६ महीने तक जलती रही . अनेक महत्वपूर्ण ग्रन्थों के नष्ट हो जाने से भारत आने वाले समय में विज्ञान, खगोलशास्त्र, चिकित्सा और गणित जैसे क्षेत्रों मे पिछड़ गया।

Nalanda University

10,000 students, 2,000 teachers were to teach here.but Korea, Japan, China, Tibet, Indonesia, Persia and Turkey came from student learning. Graduates typically go out of Nalanda Shicshaprapt used to propagate Buddhism. The university during the ninth century to the twelfth century was Antrrrashtryy reputation. Very well planned and detailed in the University, this was amazing piece of architecture. The whole complex was surrounded by a huge wall which was a main door for entry. From north to south line of the monasteries and magnificent stupas and temples many had before them. There were beautiful sculptures of Buddha in temples. The school has seven large rooms and it was three hundred other rooms. These lectures were. Thirteen monasteries have been excavated so far. Monastery had more than one floor. Station were to sleep in a room of stone. Lamps, books, etc. were made to keep the shelf. Make a well in the courtyard of the monastery. Eight huge buildings, one temple, prayer hall and reading room in addition to many gardens and lakes, the campus was beautiful.

University Vice-Chancellor or the Acharya used to manage all the monks were elected by. Vice-Chancellor in consultation with two advisory committees to manage the whole.Donated to the University of yield and income of two hundred villages received care at the committee. Shstron students from the same food, clothing and accommodation was arranged. The university professor who had the merit of the three categories of first, second and third category came. Nalanda Shilbdra in the famous maestros, Dharam Pal, Chanderpaul, was the head Gunmti and self-collected. Famous Indian mathematician and astronomer Aryabhata was the head of the university.

The test was extremely difficult because of its talented student could enroll. Net was necessary to follow the rules of conduct and association.

Nalanda in Sanskrit means "giver of knowledge" (Nalm = lotus, which symbolizes knowledge, da = to give). Buddha visited Nalanda several times during his life will be longer. Nirvana of Lord Mahavira of Jainism in the Nalanda Pawapuri place was called.

Bakhtiar Khilji in 1199 Ottoman occupation and completely destroyed by fire. When he reached Nalanda Nalanda University, he asked the teachers to the Koran and other sacred texts, no. He on the Nalanda University in response to the fall and the library fire. Minhaj Irani scholar writes that many scholars were burned alive and many teachers have to bite the head. Here were books in the library so the fire burned for 6 months. To the decay of many important texts to India in science, astronomy, medicine and mathematics in such areas lagged behind.

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