” गाँधी ” उपनाम सुनते ही आज की पीढ़ी के लोगों को राहुल गाँधी, सोनिया गाँधी, राजीव गाँधी, इंदिरा गाँधी ( जिनके पति फीरोज़ गाँधी के कारण ही यह उपनाम इस परिवार को मिला ) की याद आने लगती है, पर एक समय वह भी था जब यह उपनाम एक ऐसे महापुरुष के लिए मानों रिज़र्व था जिनका वास्तविक नाम तो मोहन दास करमचंद गाँधी था, पर इस देश की जनता ने जिन्हें ” महात्मा “, “बापू “, ” राष्ट्र पिता ” जैसे तरह – तरह के सम्मानप्रद नाम देकर अपनी श्रद्धा व्यक्त की थी . उनके जीवनकाल में अंग्रेजी समाचारपत्रों में उन्हें प्रायः ” मिस्टर गाँधी ” लिखा जाता था , अंग्रेज़ी-दां लोगों के बीच बातचीत में भी उन्हें इसी नाम से संबोधित किया जाता था, पर हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं के समाचारपत्रों में उन्हें ” महात्मा गाँधी ” लिखा जाता था , और बोलचाल में तो लोग उन्हें केवल ” महात्मा जी ” ही कहने लगे थे . आइए, जानें कि उनके लिए इस संबोधन की शुरुआत कैसे हुई .
18 वर्ष की आयु में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद गाँधी जी बैरिस्टरी की पढ़ाई करने इंग्लैण्ड चले गए . तीन वर्ष बाद वे भारत वापस आए . लगभग दो वर्ष मुंबई और राजकोट में वकालत करने के उपरांत वे 24 वर्ष की आयु में ( सन 1893 में ) दक्षिण अफ्रीका चले गए जहाँ काफी संख्या में भारतीय रहते थे और उनमें से अधिकतर संपन्न व्यापारी थे . गाँधी जी वहां लगभग बीस वर्ष (सन 1915 तक) रहे. यहीं रहते हुए उनके जीवन में ऐसे परिवर्तन आए जिनके कारण वे एक सामान्य बैरिस्टर से कहीं ऊपर उठकर एक नेता, वास्तविक अर्थ में ऐसे सच्चे नेता बन गए जिसने अपने लिए आधुनिक नेताओं वाली सुविधाएं जुटाने के बजाय समाज के दबे – कुचले आम आदमी के जीवन को बदल देने वाली सुविधाएं आम आदमी को ही उपलब्ध कराने में अपना सारा जीवन लगा दिया. भारत की आज़ादी के लिए संघर्ष करने की योजना गाँधी जी ने यहीं रहते हुए बनाई . गाँधी जी जिस प्रकार की स्वतन्त्रता देश के लिए चाहते थे , उसकी रूपरेखा स्पष्ट करने वाली उनकी पुस्तक ” हिंद स्वराज ” की रचना भी यहीं हुई जो 1909 में प्रकाशित हुई. यहीं उन्होंने फीनिक्स आश्रम की स्थापना की जिसमें रहने वाले लोग अपने सभी काम स्वयं करते थे, फिर वह चाहे खेती का काम हो, या जूता गांठने का या मल उठाने का , और यहीं टालस्टाय आश्रम बनाया जिसमें उक्त बातों के साथ ही शिक्षा सम्बन्धी वे प्रयोग किए जिनके आधार पर बाद में बुनियादी शिक्षा ( Basic Education ) का योजना बनाई गई .
दक्षिण अफ्रीका में उस समय अंग्रेजों का ही शासन था जो वहां प्रवासी भारतीयों के साथ तरह – तरह के भेदभावपूर्ण व्यवहार करते थे . डरबन कोर्ट में एक मुकदमे की पैरवी के लिए बैरिस्टर के रूप में उपस्थित गाँधी जी से मजिस्ट्रेट का ‘ पगड़ी ‘ उतारने के लिए कहना (आज तो हमलोग अंग्रेजी संस्कृति इतनी अपना चुके हैं कि अब शायद पगड़ी का महत्व ही न समझ पाएं ) , या रेल में प्रथम श्रेणी का टिकट होने के बावजूद उन्हें रेल से उतार देना और सामान प्लेटफार्म पर फेंक देना जैसे दुर्व्यवहार से तो हम परिचित हैं ही . वहां की सरकार ने भारतीयों को अपमानित करने के लिए उन पर अनेक तरह के टैक्स लगाए और अनेक कानून बनाए . हर भारतीय को अपने फिंगर प्रिंट रजिस्टर कराना अनिवार्य कर दिया था.
दक्षिण अफ्रीका के ऐसे माहौल में गाँधी जी के राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई . उन्होंने इस प्रकार के टैक्सों और कानूनों का ‘ अहिंसात्मक ‘ ढंग से विरोध करने के लिए भारत की एक पुरानी परम्परा को अस्त्र बनाया जिसे यहाँ उन्होंने ‘ सत्याग्रह ‘ का नाम दिया. उनके प्रयासों से प्रवासी भारतीयों में स्वाभिमान जागा, वे संगठित हुए, और लगभग आठ वर्ष के संघर्ष के बाद गाँधी जी का यह प्रयोग सफल हुआ . दक्षिण अफ्रीका की सरकार से जब समझौता हुआ तो 13 प्रकार के टैक्स समाप्त किए गए और फिंगर प्रिंट की जगह आवास सम्बन्धी प्रमाणपत्र पर ही अंगूठे के निशान को पर्याप्त माना गया . इस सफलता ने एक ओर गाँधी जी को आत्म विश्वास से भर दिया और दूसरी ओर उनकी ख्याति दूर दूर तक फैला दी. भारत में भी उनकी यशः सुरभि राजनीतिक वातावरण को महकाने लगी.
जब यह “ सत्याग्रह आन्दोलन ” दक्षिण अफ्रीका में चल रहा था , तब इस कार्य के लिए अपेक्षित आर्थिक सहयोग जुटाने के प्रयास वहां तो किए ही जा रहे थे, भारत में भी गोपाल कृष्ण गोखले, सी. एफ. एंडरूज़ ( गाँधी जी उनके सेवा भाव और परोपकारी स्वभाव के कारण उनके नाम के प्रारम्भिक अक्षरों का विस्तार Christ’s Faithful Apostle के रूप में करते थे , और बाद में ” दीनबंधु ” कहने लगे ) जैसे तत्कालीन नेता चन्दा इकट्ठा करने में जुटे थे. इस कार्य में उन्हें विशेष सहयोग उस समय के एक और बड़े नेता स्वामी श्रद्धानंद से एवं उनके द्वारा सन 1902 में स्थापित शिक्षा की प्रसिद्ध संस्था गुरुकुल काँगड़ी (हरिद्वार ) के शिक्षकों और विद्यार्थियों से मिला.
जो पाठक गुरुकुल कांगड़ी और / या स्वामी श्रद्धानंद की विशिष्टताओं से परिचित नहीं, उनकी जानकारी के लिए यह बताना आवश्यक है कि यह वह संस्था है जिसके बारे में ब्रिटेन के पूर्व प्रधान मंत्री ” रैम्ज़े मैक्डनाल्ड ” ने कहा था, ” मैकाले के बाद भारत में शिक्षा के क्षेत्र में जो सबसे महत्वपूर्ण और मौलिक प्रयोग (एक्सपेरिमेंट ) हुआ, वह गुरुकुल है .” संयुक्त प्रांत (वर्तमान उ. प्र.) के तत्कालीन गवर्नर ” सर जेम्स मेस्टन ” ने गुरुकुल की कार्यप्रणाली देखने के बाद टिप्पणी की, ” आदर्श विश्वविद्यालय की मेरी यही कल्पना है .” और स्वामी श्रद्धानंद – ये वे ही महापुरुष हैं जो उस समय कांग्रेस के एक बड़े नेता थे , जिन्होंने रौलेट एक्ट के विरोध में 30 मार्च 1919 को चाँदनी चौक, दिल्ली में निकले जुलूस का ( जो इसी एक्ट के अंतर्गत प्रतिबंधित था ) नेतृत्व किया था, अंग्रेजों की संगीनों के सामने अपना सीना तानकर कहा था, ” ले, भोंक दे संगीन “, पर जिनकी भव्य आकृति , रोबीली आवाज़ , और अदम्य साहस को देखकर सैनिक डर कर पीछे हट गए थे ; और इतना ही नहीं, जिन्होंने मुस्लिम समुदाय के आमंत्रण पर 4 अप्रैल 1919 को दिल्ली की जामा मस्जिद में वेद मन्त्र पढ़ कर व्याख्यान दिया था ( जी हाँ, जामा मस्जिद में वेद मन्त्र पढ़कर व्याख्यान, यह भारत का ही नहीं, विश्व के इतिहास में अपनी तरह का एकमात्र उदाहरण है ), जिनके बारे में पूर्व ब्रिटिश प्राइम मिनिस्टर रैम्ज़े मैक्डनाल्ड ने कहा था, ” वर्तमान काल का कोई कलाकार भगवान् ईसा की मूर्ति बनाने के लिए यदि कोई सजीव मॉडल चाहे, तो मैं इस भव्य मूर्ति ( स्वामी श्रद्धानंद ) की ओर इशारा करूँगा. “ पर श्रद्धानंद नाम तो उनका तब पड़ा जब 12 अप्रैल 1917 को उन्होंने संन्यास आश्रम में प्रवेश किया. जिस समय की हम बात कर रहे हैं, उस समय उनका नाम ” मुंशी राम ” था. वे अपने परिवार का त्याग कर चुके थे, ” वानप्रस्थी ” का जीवन बिता रहे थे और अपना नाम ” मुंशीराम जिज्ञासु ” लिखते थे, पर लोग उनके त्यागपूर्ण और परोपकार में डूबे जीवन को देखकर उन्हें सम्मान से ” महात्मा मुंशीराम ” कहते थे.
दक्षिण अफ्रीका के ” सत्याग्रह आन्दोलन ” की सहायतार्थ भारत में चंदा इकट्ठा करने का प्रयास करने वाले दीनबंधु सी. एफ. एंडरूज़ और गोपाल कृष्ण गोखले ने अपने मित्र महात्मा मुंशीराम को अपने काम में सहयोगी बनाया. मुंशीराम जी ने गाँधी जी के काम का महत्व एवं इस आन्दोलन के लिए आर्थिक सहयोग देने की आवश्यकता अपने गुरुकुल के विद्यार्थियों / शिक्षकों को समझाई . सबने अपने भोजन में कमी करके , दूध – घी बंद करके, तथा हरिद्वार में बन रहे दूधिया बाँध पर मजदूरी करके एक हज़ार पांच सौ रुपये इकट्ठे किए जो मुंशीराम जी ने गोखले जी के पास भेज दिए. गोखले जी के पास यह राशि उस समय पंहुची जब वे हताश हो गहरी चिंता में डूबे हुए थे. कहते हैं यह राशि मिलने पर गोखले जी प्रसन्नता में कुर्सी से उछल पड़े और बोले कि यह पंद्रह सौ नहीं, पंद्रह हज़ार से भी अधिक कीमती हैं . उन्होंने 27 नवम्बर , 1913 को महात्मा मुंशीराम जी को दिल्ली से हिंदी में अपने हाथ से पत्र लिखा जिसमें गुरुकुल के विद्यार्थियों और शिक्षकों की भावना और त्याग की भूरि – भूरि प्रशंसा की, इसे देशभक्तिपूर्ण कार्य बताया, भारत माता के प्रति कर्तव्यपालन बताया और देश के युवकों एवं वृद्धों के समक्ष एक आदर्श उदाहरण बताया.उन्होंने और श्री एंडरूज़ ने गाँधी जी को गुरुकुल के लोगों के इस त्याग से अवगत कराया. अतः गांघी जी ने नैटाल, दक्षिण अफ्रीका से मुंशीराम जी को पहला पत्र अंग्रेजी में लिखा, पत्र का प्रारम्भिक अंश इस प्रकार था :
“ प्रिय महात्मा जी,
मि. एंडरूज़ ने आपके नाम और काम का मुझे परिचय दिया है. मैं अनुभव कर रहा हूँ कि मैं किसी अजनबी को पत्र नहीं लिख रहा. इसलिए आशा है कि आप मुझे ” महात्मा जी ” लिखने के लिए क्षमा करेंगे. मैं और मि. एंडरूज़ आपकी और आपके काम की चर्चा करते हुए आपके लिए इसी शब्द का प्रयोग करते हैं…………………..”
इस प्रकार शुरू हुए पत्र – व्यवहार के माध्यम से गाँधी जी की मुंशीराम जी से निकटता बढ़ती गई . गाँधी जी ने जब भारत वापस आने और स्वतन्त्रता के लिए आन्दोलन करने की योजना बनाई तो पहले अपने आश्रम के विद्यार्थियों को भारत भेजने की व्यवस्था की. अहमदाबाद में तब तक आश्रम की स्थापना का निश्चय नहीं हो पाया था. इसलिए गाँधी जी ने अपने विद्यार्थियों के लिए सर्वोत्तम स्थान गुरुकुल कांगड़ी ही तय किया . सन 1914 में ये विद्यार्थी गुरुकुल आ गए और कई महीनों तक वहीँ रहे ( बाद में कुछ समय गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के शांति निकेतन में भी रहे ) . अगले वर्ष अर्थात 1915 में गाँधी जी भारत आए. उन्होंने पूना से महात्मा मुंशीराम जी को हिंदी में पत्र लिखा जिसमें अन्य बातों के साथ लिखा :
“……….मेरे बालकों के लिए जो परिश्रम आपने उठाया और जो प्यार बतलाया उस वास्ते आपका उपकार मानने को मैंने भाई एंडरूज़ को लिखा था लेकिन आपके चरणों में शीश झुकाने को मेरी उम्मेद है. इसलिए बिना आमंत्रण आने का भी मेरा फरज बनता है. मैं बोलपुर ( यह उस स्थान का नाम है जहाँ गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर ने शांति निकेतन की स्थापना की) पीछे फिरूं उससे पहले आपकी सेवा में हाजिर होने की मुराद रखता हूँ ……..”
उस वर्ष 1915 में हरिद्वार में कुम्भ भी था. गाँधी जी वहां आए . गुरुकुल में गाँधी जी ने महात्मा मुंशीराम जी के प्रति अपनी श्रद्धावश उनके चरण छूकर नमस्कार किया. यही वह पावन क्षण था जब मुंशीराम जी ने भी गाँधी जी को ” महात्मा जी ” कहकर संबोधित किया . एक महापुरुष ने जब दूसरे महापुरुष की साधना का सम्मान करते हुए उन्हें ” महात्मा ” की पदवी दी तो मानों सारा वातावरण धन्य हो उठा. और बाद में यही सम्मानसूचक शब्द देश में ही नहीं, पूरे विश्व में उनकी पहचान बन गया . गुरुकुल के विद्यार्थियों ने मौखिक रूप से कहे गए इस सम्मान को अपने उस अभिनन्दन पत्र में स्थायी रूप प्रदान कर दिया जो इस अवसर पर उन्होंने तैयार किया और गाँधी जी को सादर भेंट किया. इसमें उन्होंने गाँधी जी को ” महात्मा जी ” कहकर ही संबोधित किया. अभिनन्दन पत्र स्वीकार करते हुए गाँधी जी ने हिंदी में भाषण देते हुए कहा :
” मैं हरिद्वार केवल महात्मा जी के दर्शनों के लिए आया हूँ. मैं उनके प्रेम के लिए कृतज्ञ हूँ. मि. एंडरूज़ ने मुझको भारत में अवश्य मिलने योग्य जिन तीन महापुरुषों का नाम बतलाया था, उनमें महात्मा जी एक हैं. ……. मुझे अभिमान है कि महात्मा जी मुझको ” भाई ” कहकर पुकारते हैं. मैं अपने में किसी को शिक्षा देने की योग्यता नहीं समझता, किन्तु महात्मा जी जैसे देश के सेवक से मैं स्वयं शिक्षा लेने का अभिलाषी हूँ ………….”
गुरुकुल कांगड़ी की यह यात्रा गाँधी जी के लिए अविस्मरणीय बन गई . बाद में जब उन्होंने अपनी आत्मकथा ” सत्य के प्रयोग ” लिखी , तो उसमें इस यात्रा का भी उल्लेख करते हुए लिखा ,
” जब मैं पहाड़ से दीखने वाले महात्मा मुंशीराम जी के दर्शन करने और उनका गुरुकुल देखने गया, तो मुझे वहां बड़ी शांति मिली. हरिद्वार के कोलाहल और गुरुकुल की शांति के बीच का भेद स्पष्ट दिखाई देता था. महात्मा जी ने अपने प्रेम से मुझे नहला दिया. ब्रह्मचारी ( गुरुकुल के विद्यार्थियों को ” ब्रह्मचारी ” कहा जाता था ) मेरे पास से हटते ही न थे. ………. यद्यपि हमें अपने बीच कुछ मतभेद का अनुभव हुआ , फिर भी हम परस्पर स्नेह की गाँठ में बंध गए……………मुझे गुरुकुल छोड़ते हुए बहुत दुःख हुआ .”
गुरुकुल कांगड़ी में गाँधी जी के आगमन, उनके अभिनन्दन, ” महात्मा ” संबोधन, आदि के समाचार तत्कालीन समाचारपत्रों में भी छपे. जैसा गाँधी जी ने मुंशीराम जी को संबोधित पत्र में लिखा था, वे बाद में रवीन्द्र नाथ टैगोर से मिलने बोलपुर (शान्तिनिकेतन) गए जहाँ ” ब्रह्मचर्य आश्रम ” ( टैगोर ने अपने विद्यालय का यही नाम रखा था ) की 22 दिसंबर 1901 को स्थापना हो चुकी थी, और टैगोर को उनके काव्य संग्रह ” गीतांजलि ” के टैगोर के द्वारा ही किए गए अंग्रेजी रूपांतर पर विश्व प्रसिद्ध नोबल पुरस्कार सन 1913 में मिल चुका था. अतः उनकी ख्याति भी दूर – दूर तक पहुँच चुकी थी , पर अभी तक इन महापुरुषों का संपर्क नहीं हुआ था. टैगोर के पास गाँधी जी के लिए ” महात्मा ” संबोधन का सन्देश पहुँच चुका था जो उन्हें गाँधी जी के व्यक्तित्व के सर्वथा अनुरूप लगा . तभी तो जब उनकी गाँधी जी से साक्षात भेंट हुई तो उन्होंने भी गाँधी जी का अभिवादन ” महात्मा जी ” कहकर ही किया . टैगोर की भव्य आकृति , बड़ी हुई दाढ़ी प्राचीनकाल के ऋषियों की याद दिलाती थी . अपने ब्रह्मचर्य आश्रम के शिक्षक वे थे ही . अतः गाँधी जी ने भी उन्हें “गुरुदेव ” कहकर अपना सम्मान व्यक्त किया. दोनों ही एक – दूसरे के व्यक्तित्व से अभिभूत थे .
इस प्रकार गाँधी जी को सबसे पहली बार ” महात्मा ” कहकर संबोधित करने वाले महापुरुष थे स्वामी श्रद्धानंद ( महात्मा मुंशीराम) , और स्थान था गुरुकुल कांगड़ी (हरिद्वार) . साथ ही उसे अपना समर्थन देकर संपुष्ट करने और लोकप्रिय बनाने वाले थे स्वयं विश्वप्रसिद्ध गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर. इन दोनों महापुरुषों ने गाँधी जी के प्रति जो सम्मान व्यक्त किया उसी का परिणाम था कि कालान्तर में ” महात्मा ” संबोधन गाँधी जी के नाम का पर्याय बन गया.
In English
"Gandhi" nickname listen to the people of today's generation Rahul Gandhi, Sonia Gandhi, Rajiv Gandhi, Indira Gandhi (whose husband Firojh Gandhi got it the nickname the family) seems to be missing, at a time he was also Reserve values for this nickname was a master whose real name was Mohandas Karamchand Gandhi, whom the people of this country, "saint", "Bapu", "father of the nation" as such - like his homage by the honorific name was expressed. English newspapers in their lifetime, they often "Mr. Gandhi" was written, English - Dan in the interaction between people, also referred to by the same name, but in Hindi and other Indian languages newspapers "Mahatma Gandhi" is written , and spoken to them only "Mahatma" was just saying. Let us know how it was for them the beginning of the address.
At the age of 18 after passing the matriculation examination Baristri Gandhi went to England to study. Three years later he returned to India. After nearly two years he practiced in Mumbai and Pune at the age of 24 (in 1893) moved to South Africa where quite the diaspora and most of them were traders. Gandhi nearly twenty years (until 1915) are.that altered to provide facilities to the common man to devote his entire life. India plans to fight for freedom while Gandhi made here. The way for the country's independence, Gandhi wanted to clear his outline of his book "Hind Swaraj", which was composed of the same was published in 1909.on the basis of which the basic education (Basic Education) was planned for.
Which at that time was ruled by the British in South Africa with the diaspora - it was such discriminatory practices.Despite the first-class ticket on the train platform to take off and throw stuff so we are familiar with, such as abuse. Indians to humiliate the government tax levied on them and many many such laws. Every Indian had made it mandatory to register their fingerprints.
South Africa, Gandhi's political career began in such an environment. He thus taxes and laws 'non-violent' manner opposed to the old tradition of Indian-made weapons, which he here 'Satyagraha' named. Self-aware of their efforts in the Diaspora, they were organized, and nearly eight years after Gandhi's struggle experiment is a success.The success on one side and the other side filled with confidence Gandhi His fame spread far. India started their Yashः Surabhi Mahkane political environment.
When this "Satyagraha Movement" in South Africa was an effort to raise the financial support required for this task if there were going to be, even in India, Gopal Krishna Gokhale, C. F. Anderugh (Gandhi stewardship and philanthropic nature due to their initial letters of their name used as an extension of Christ's Faithful Apostle, and after "Deenbandhu to"), such as the leaders were working to collect donations.
Gurukul Kangri the reader and / or Shraddhananda not familiar with the specifications, their information is necessary to tell it that it is the institution of the former British Prime Minister "Ramjhe Makdnald" he said, "Macaulay in India In education, the most important and fundamental experiment (Experiment), he is spiritual. "United Provinces (now Uttar Pradesh), the then Governor," Sir James Meston "After seeing the functioning of the Gurukul, commented," ideal university This is my fantasy. "and Shraddhananda - These are the master at that time was a major leader of Congress who oppose the Rowlatt Act on 30 March 1919, Chandni Chowk, Delhi took a procession (which under this Act was restricted) had led the British bayonets outstretched in front of his chest said, "take the bayonet to stab", but whose imposing figure, Robili voice, and seeing indomitable soldiers had retreated in fear, and so No, who the invitation of the Muslim community in Delhi's Jama Masjid on 4 April 1919, the lecture was read Veda mantra (Yes, Jama Masjid lecture by reading the Veda mantra, not only in India, the only of its kind in the history of the world"Sraddhanand name on April 12, 1917 when he retired he had then entered the hermitage. By the time we are speaking, then, the name "Munshi Ram" was.
South Africa's "Satyagraha Movement" to try to collect donations to help the Indian Deenbandhu C. f. Gopal Krishna Gokhale and Mahatma Munshiram Anderugh his friend made his work colleague. Munshi Ram importance of the work of Gandhi ji and the need to provide financial support to the movement of the Gurukul students / teachers explained. The reduction in all your meals, milk - butter close by, and became milky in Haridwar bind one thousand five hundred rupees on the wages earned by those who live near Gokhale sent Munshiram law. GK Gokhale Panhuchi the time when they're desperate to have this amount was in deep concern. Gokhale says when the amount of live happily bouncing chair and said that it had not fifteen hundred, are more precious than fifteen thousand. The November 27, 1913 in Hindi from Delhi Mahatma Munshiram live hand-written letter and spirit of the spiritual sacrifice of the students and teachers lauded - praise, it was patriotic act, and the country of India, pointed towards the discharge of duties was a perfect example to the young and the elderly. Anderugh said he and Mr. Gandhi Gurukul people exposed to this disclaimer. So Gandhi ji Natal, South Africa, the first letter of the law written in English Munshiram, early excerpt of the letter follows:
"Dear Lord G,
Min. Anderugh your name and introduced me to the work. I feel that I am not writing a letter to a stranger. So, I hope you "Mahatma" to write to me. I min. Anderugh referring to you and your work, you use the same word ....................... "
Thus began correspondence through increased proximity of Gandhi ji Munshi Ram.Ahmedabad Ashram founded by then had not decided. So Gandhi Gurukul Kangri his pupils to decide the best location. These students come Gurukul in 1914 and lived there for several months (after some time of Gurudev Rabindranath Tagore at Santiniketan there). The next year, ie in 1915, Gandhi returned to India. The Pune Mahatma Munshiram letter G in Hindi wrote among other things:
".......... And raised my children who love to tell you who labor to acknowledge your favor for the sake Anderugh brother wrote I tilt my head to your feet, but is reliant. So also my Frj does come uninvited. I Bolpur (name of the place where Gurudev Rabindranath Tagore founded Santiniketan) Back Firun purport to spot him at your place ........ "
1915 was also the year in Haridwar Kumbh. Gandhi was there. Mahatma Gandhi in his Gurukul Munshiram g Sraddhavs saluted by touching his feet. That was the moment when the sacred law by Munshi Ram Gandhi "Mahatma" has referred. When the master of the spiritual master, he respects the "Mahatma" was the title of the values that make the whole environment will be blessed. And later the honorific term, not only in the country, has become known all over the world.In it he Gandhi "Mahatma", saying it was addressed. Acknowledging address of welcome speech in Hindi Gandhi said:
"I've come to Haridwar only Mahatma's Views. I am grateful for their love. Min. The three great men in India have found me worthy Anderugh the name was revealed, they are the Mahatma. ....... I am proud that Mahatma me "brother" to call. I do not think anyone in the ability to teach, but in a country like Mahatma server ............. I am intending to take self-education "
Gurukul Kangri became unforgettable for Gandhi's visit. Later in his autobiography, "The use of Truth" written, it also refers to the visit, and writes,
"When I seen from the mountain and spiritual philosophy of Mahatma Munshi Ram live view, then I got there so peaceful. Haridwar clear distinction between noise and spiritual peace was visible. Mahatma did bathe me with his love. Brahmachari (student of Gurukul "celibate" was called) had not moved away from me. .......... Although we experienced some differences, we tied the knot of mutual affection ............... Gurukul, leaving me very sad. "
Gandhi's arrival in Gurukul Kangri, their greetings, "Mahatma" address, and then the news published in newspapers. As Gandhi wrote in a letter addressed to Munshiram law, they later meet Rabindranath Tagore Bolpur (Shantiniketan) where the "Brahmacharya Ashram" (Tagore had put the school's name) has been established on December 22, 1901 , and Tagore, his poetry collection "Gitanjali" by Tagore, the English version of the world famous Nobel Prize was won in 1913. So far his reputation - was far-reaching, yet was not exposed to these great men. Near Tagore to Gandhi "Mahatma" Gandhi's speech which he had pushed the message of the suit was downright personality. Only then, when they met face to Gandhi, he also greeted Gandhi "Mahatma" did call. Tagore's grand shape, reminiscent of the great mystics of ancient beard. Brahmacharya Ashram they were his only teacher. Gandhi therefore also the "Guru" saying respect. Both - were overwhelmed by the other's personality.
This is the first time Gandhi "Mahatma" was referred to the master Shraddhananda (Mahatma Munshiram), and was the Gurukul Kangri (Haridwar). To confirm and give him your support as well, which popularized the famous Gurudev Rabindranath Tagore himself. These two great men of the Gandhi respect the result of which was that in course of time, "Mahatma" Gandhi's name became synonymous with speech.
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